Top 10 similar words or synonyms for turbulent

swirling    0.952860

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limitation    0.931337

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Top 30 analogous words or synonyms for turbulent

Article Example
रेनल्ड्स संख्या रेनल्ड्स संख्या से पता चल जाता है कि प्रवाह पटलीय (Laminar) होगा या विभुब्ध( turbulent)।
वेस्ट्मिन्स्टर ऍबी It suffered damage during the turbulent 1640s, when it was attacked by Puritan iconoclasts, but was again protected by its close ties to the state during the Commonwealth period. Oliver Cromwell was given an elaborate funeral there in 1658, only to be disinterred in January 1661 and posthumously hanged from a gibbet at Tyburn.
वायुगतिकी परिकल्पित अश्यान (inviscid) तरल के सिद्धांत का एक निष्कर्ष यह है कि यदि कोई पिंड ऐसे तरल में चलता है जो केवल पिंड के कारण ही विरामावस्था को छोड़े हुए है, तो पिंड के परित: प्रवाहप्रकार अद्वितीय रूप से पिंड के आकार और उसकी गति से निर्धारित हो जाता है और पिंडपृष्ठ के विभिन्न बिंदुओं पर तरल जो दबाव लगाता है, उनका परिणामी शून्य होता हैं, भले ही उनका आघूर्ण शून्य न हो। यह स्थिति वायुयान पक्षक जैसे चपटे सुप्रवाही पिंड पर उपलब्ध होती है। जो भी थोड़ा-बहुत कर्ष (drag) रहता है, वह केवल त्वक्घर्षण (skin friction), अर्थात् पृष्ठ पर वायुघर्षणजनित स्पर्शरेखीय बलों, के कारण होता है। बड़ी रेनोल्ड संख्यावाले प्रवाहों में त्वक्घर्षण पिंडपृष्ठ से लगी अत्यंत पतली परत में, जिसे परिसीमा स्तर (boundary layer) कहते हैं, सीमित रहता है। इस स्तर के भीतर का प्रवाह अत्यंत जटिल है। स्तर के बाहर का प्रवाह धारारेखी अश्यान तरल जैसा होता है। जब तक पक्षक का वेग से आपात कोण (incidence angle) अत्यधिक न हो, पक्षक के परित: प्रवाह धारारेखी होगा, कर्ष कम होगा और पक्षक पर उत्थापक बल (lift) लगाएगा, जो आपात कोण के साथ बढ़ेगा। यदि आपात कोण एक सीमा से बढ़ जाता है, तो प्रवाह धारारेखी न रहकर विक्षुब्ध (turbulent) हो जाता है और पक्ष अव्यवस्थित होने लगता है (अर्थात् stalls); कर्ष एकदम बए जाता है और उत्थापक बल आपात कोण के बढ़ने पर कुछ कम होने लगता है। कम आपात कोण की अवस्था में भी बलों का सैद्धांतिक विवेचन जटिल है; विशेषकर परिमित परिमाण के पक्षक में प्रेरित कर्ष (induced drag), पार्श्व कर्ष (profile drag) आदि, पर विचार करना होता है। मुक्त उड़ान (free flight) में स्थायित्व (stability) की समस्या भी उपस्थित हो जाती है। उड़ानविज्ञान में इनका विवेचन अत्यंत महत्व का है।
कॉरोना किरीट में लोह के ऐसे परमाणुओं की उपस्थिति जिनके 13 इलेक्ट्रन आयनित हो चुके हैं, यह संकेत करती है कि किरीट में 10 लाख अंशों से अधिक का ताप विद्यमान होना चाहिए। इस कथन का समर्थन अनेक प्रकार के अवलोकन करते हैं, जिनमें से सूर्य से आनेवाले रेडियो विकिरण की तीव्रता का अध्ययन प्रमुख है। किरीट, सौर ज्वाला (Prominence) और वर्णमंडल का प्रकाशमंडल की अपेक्षा अधिक ताप पर होना अत्यंत विषम परिस्थिति उपस्थित करता हैं। यह अधिक ताप प्रकाशमंडल से तापसंवाहन के कारण नहीं हो सकता, क्योंकि उष्मा उच्च ताप से निम्न ताप की ओर गमन करती हैं। किरीट के इस अत्यधिक ताप का कारण अभी तक निश्चयात्मक रूप से ज्ञात नहीं हो सका हैं। अनेक ज्योतिषियों ने समय समय पर इस विषय पर अनेक प्रकार के विचार प्रकट किए हैं, जिनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं। मेंज़ल ने यह कल्पना की कि सूर्य के अंतर में किसी कारण ऐसे भंवर उत्पन्न होते हैं जिनमें सूर्य के उच्च तापवाले निम्न स्तरों का पदार्थ विस्तरण करता हुआ उसके पृष्ठ तक आ पहुँचता है और प्रत्येक क्षण विस्तरण के कारण उत्पन्न होनेवाले ताप के ह्रास को रोकने के लिए भँवर के पदार्थ का पुन: तापन होता रहता हैं। यह पदार्थ वातिमंडल में ऊपर उठता रहता है और कुछ समय के पश्चात् वह अपनी उष्णता को किरीट में मिलाकर उसका ताप बड़ा देता हैं। उनसोल्ड ने यह सिद्ध किया है कि प्रकाशमंडल के समीप उस स्तर में जिसका ताप 10,000 अंश से 20,000 अंश तक है, पदार्थ की गति विक्षुब्ध (turbulent) होती है और संवाहन का यह प्रदेश हाइड्रोजन के आयनीकरण के कारण उत्पन्न होता हैं। अधिकांश ज्योतिर्विद् इस मत से सहमत हैं कि यह प्रदेश शूकिकाओं (Spikelets) एवं कणिकाओं से संबंधित विक्षुब्ध गति का उद्गम है। टॉमस और हाउट्गास्ट के मतानुसार सूर्य के अंदर से उष्ण गैस की धाराएँ ध्वनि की गति से भी अधिक वेग के साथ किरीट में प्रवेश करती हैं और प्रेक्षित ताप तक उसको तप्त करती हैं। श्वार्शचाइल्ड ने भी इसी प्रकार के विचार प्रकट किए हैं, परंतु उनका मत है कि उष्ण गैस की इन धाराओं का वेग ध्वनि की गति से कम होता हैं। यह असंभव नहीं कि इस प्रकार के प्रभावों का किरीट के लक्षणों का निर्धारण करने में अत्यंत महत्वपूर्ण भाग हो। ऑल्फवेन ने यह सिद्ध किया है कि जब विद्युच्छंचारी पदार्थ चुंबकीय क्षेत्र में गतिमान होता है तो विद्युच्चुंबकीय तरंगें उत्पन्न होती हैं। सूर्य के एवं कलंकों के चुंबकीय क्षेत्र में विद्यमान पदार्थ की गति ऐसी तरंगें उत्पन्न करने में समर्थ है। ऑल्फवेन और वालेन का मत है कि ज्यों-ज्यों ये तरंगें किरीट में आगे बढ़ती हैं उनकी ऊर्जा क ह्रास होता जाता है और यह ऊर्जा किरीट को अभीष्ट ताप तक तप्त करने में समर्थ होती हैं।